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Godda News : गोड्डा जिले के तारडीहा गांव में 1864 से चड़क मेला लगता आ रहा है. 15 अप्रैल को होने वाले इस मेले में भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की पूजा होती है.

गोड्डा
हाइलाइट्स
- गोड्डा के तारडीहा गांव में 1864 से चड़क मेला लगता है
- मेले में भोलेनाथ और माता पार्वती की पूजा होती है
- 30 फीट ऊंचे चड़क पर भक्त को चढ़ाकर घुमाया जाता है
गोड्डा. जिले पथरगामा प्रखंड क्षेत्र के तारडीहा गांव में वर्ष 1864 से चड़क मेला लगता आ रहा है. यह मेला हर वर्ष 15 अप्रैल को लगता है, जिसमें आस पास के बिहार झारखंड के कई ग्रामीण क्षेत्रों से आदिवासियों की भीड़ इस मेले में लगती है. इस मेले का केन्द्र बिंदु यहां स्थित भगवान भोले शंकर का मंदिर और भोले नाथ और माता पार्वती का स्थान चड़क होता है, जिसमें पूजा के बाद तकरीबन 30 फीट ऊंचे चड़क में भगवान भोलेनाथ के उपासक को चढ़ा कर घुमाया जाता है, जिसका दृश्य अनोखा होता है.
1864 में बाबा भगीरथ ने की थी शुरूआत
मेला के आयोजक मुनिलाल हांसदा ने जानकारी लोकल 18 को देते हुए बताया कि इस मेला की शुरुआत 1864 में उनके पूर्वज बाबा भागीरथ ने किया था. उसी ने यहां मंदिर की स्थापना भी की थी और चड़क प्रथा की शुरुआत भी किया था. तब से लेकर आज तक यहां इसी प्रकार धूम धाम से चड़क मेला लगता आ रहा है.
बाबा के भक्त करते हैं उपासना
लोगों की मान्यता है कि इस चड़क मेले में भगवान भोलेनाथ और माता गौरी की पूजा बैसाख माह के दूसरे दिन होती है, जिसमें इस सीजन में होने वाली फसल का पहला अनाज और कच्चा आम भगवान को चढ़ाया जाता है. इसके बाद भगवान भोले शंकर के जो भी भक्त उनकी उपासना करते है. वहीं इस चड़क पर चढ़ कर उस पर से एक साझे में फूल लेकर लोगों के नीचे फूल बरसाते हैं, जहां इस पूरे मेला का केंद्र बिंदु यही चड़क प्रथा होती है. इसका दृश्य देखने के लिए लाखों लोगों की भीड़ यहां लगती है और मान्यता यह भी है कि ऊपर से फेंके गए फूल जिसे मिलता है. उनका कल्याण होता है.