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Communal Harmony: जशपुर जिले के पत्थलगांव में हजरत सैयद सुल्तान पीर की मजार हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है. ब्राह्मण परिवार द्वारा 28 साल से पूजा-अर्चना की जा रही है. हर साल उर्स में हजारों लोग शामिल होते हैं.

बाबा सुल्तान पीर का मजार
हाइलाइट्स
- हजरत सैयद सुलतान पीर की मजार हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है
- 28 साल से ब्राह्मण परिवार द्वारा पूजा-अर्चना की जा रही है
- हर साल उर्स में हजारों लोग शामिल होते हैं
अंबिकापुर. जहां आस्था के नाम पर भेदभाव और अलगाववाद का बोलबाला है, वहीं सरगुजा संभाग के जशपुर जिले के पत्थलगांव में मदनपुर इंजको स्थित बाबा हजरत सैयद सुलतान पीर की मजार हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लिए धार्मिक सौहार्द्र और भाईचारे का प्रतीक बनी हुई है. हजरत सैयद सुल्तान पीर बाबा की मजार पर एक ब्राह्मण परिवार द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी कई वर्षों से पूजा-अर्चना की जा रही है.
ब्राह्मण परिवार द्वारा सालाना उर्स का आयोजन
यदि आस्था हो तो धर्म की दीवारें भी टूट जाती हैं. इस बात को पत्थलगांव के एक ब्राह्मण परिवार ने 28 साल पहले ही सिद्ध कर दिया था. जशपुर जिले के पत्थलगांव के नजदीक ग्राम इंजको में इस ब्राह्मण परिवार ने हजरत सैयद सुल्तान पीर की मजार बनवाई है. ये लोग चादर चढ़ाते हैं और मत्था टेकते हैं. यहां आने वाले भक्तों में से अधिकांश हिंदू होते हैं. हर साल ब्राह्मण परिवार द्वारा सालाना उर्स का आयोजन बड़े धूमधाम से किया जाता है.
भंडारे का भी होता है आयोजन
उर्स के मौके पर आसपास के गांवों से हजारों लोग जुटते हैं. मजार की स्थापना करने वाले ब्राह्मण परिवार के अशोक शर्मा, अनिल शर्मा, बिशु, राजू शर्मा और उमेश शर्मा ने बताया कि दिन में नगाड़े की धुन पर मुजावर द्वारा फातिया पढ़ी जाती है और चादरपोशी भी की जाती है. इसके साथ ही भंडारे का आयोजन भी होता है. मजार के व्यवस्थापक अशोक शर्मा ने बताया कि उर्स के मौके पर जरूरतमंदों को चादर भेंट की जाती है.
शुक्ल पक्ष के पहले गुरुवार को मनाया जाता है बाबा का उर्स
मालूम हो कि इस मजार से हिंदू समुदाय का एक बड़ा वर्ग जुड़ा हुआ है. इस मजार की स्थापना स्वर्गीय पं. रामधारी शर्मा और उनकी पत्नी स्वर्गीय गीतादेवी शर्मा ने की थी. आज अशोक शर्मा, विश्वनाथ शर्मा और राजू शर्मा समेत उनके पुत्र इसकी देखभाल करते हैं. बताया जाता है कि उनके परिवार के लोग हरियाणा से 5 ईंटें लाकर मजार बनवाए थे, तब से परिवार के लोग इसे मानते आ रहे हैं. बाबा के मानने वालों में अलग-अलग धर्मों के लोग शामिल हैं. बाबा के भक्तों द्वारा प्रतिवर्ष चैत्र माह के शुक्ल पक्ष के पहले गुरुवार को बाबा का उर्स मनाया जाता है.
बाबा की मजार पर की जाती है विशेष पूजा-अर्चना
इस अवसर पर बाबा की मजार पर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. नगर और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के अलावा अंबिकापुर, रायगढ़, कांसाबेल, प्रतापगढ़, कलकत्ता और दिल्ली हरियाणा से भी बाबा के भक्त उर्स में शामिल होने पहुंचते हैं. उर्स के मौके पर यहां भंडारे का आयोजन भी होता है. हजारों की संख्या में बाबा के भक्त सामूहिक रूप से भंडारे में बाबा का प्रसाद ग्रहण करते हैं. इस दौरान हिंदू, मुस्लिम, क्रिश्चियन का भेद मिट जाता है और सभी भक्त एक ही स्थान पर एक साथ बैठकर भोजन करते हैं. उनके परिवार के लोग बताते हैं कि बाबा की कृपा से कई लोग बड़े-बड़े पदों पर आसीन हैं.
प्रदर्शित होती है कौमी एकता
उनका कहना है कि जो भी भक्त सच्चे दिल से मन्नत मांगते हैं, वह अवश्य पूरी होती है. मुस्लिम पुजारी मौलाना शौकत अली अंसारी ने बताया कि जहां पूरे देश में मंदिर-मस्जिद के लिए दो फाड़ देखे जाते हैं, वहीं जशपुर जिले के इंजको में दोनों धर्मों की कौमी एकता प्रदर्शित होती है. उन्होंने बताया कि एक ब्राह्मण परिवार द्वारा कई वर्षों से पूजा-अर्चना की जाती है, जो असली मायने में सभी धर्मों को इस जगह से सीख लेनी चाहिए कि आपसी सौहार्द्र बना रहे.