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Health Department: सरगुजा में गुलियन बैरे सिंड्रोम का खतरा बढ़ रहा है, जिससे लोग पैरालिसिस का शिकार हो रहे हैं. छत्तीसगढ़ सरकार ने अलर्ट जारी किया है और एम्स में इलाज की व्यवस्था की है.

गुलियन बैरे सिंड्रोम
हाइलाइट्स
- सरगुजा में GBS के 2 संदिग्ध मरीज मिले
- छत्तीसगढ़ सरकार ने जारी किया अलर्ट
- मरीजों का इलाज रायपुर एम्स में हो रहा है
सरगुजा. सरगुजा में गुलियन बैरे सिंड्रोम का खतरा बढ़ रहा है. कोरोना के बाद अब एक और नई बीमारी ने दस्तक दी है, जो और भी खतरनाक है. इस बीमारी में लोग सीधे पैरालिसिस का शिकार हो रहे हैं. इसके शुरुआती लक्षण इतने सामान्य होते हैं कि इसे पहचानना मुश्किल होता है. फिलहाल छत्तीसगढ़ सरकार ने अलर्ट जारी कर दिया है और बीमार लोगों के इलाज के लिए एम्स का चयन किया गया है.
मल्टी ऑर्गन फेलियर जैसी स्थिति हो सकती है उत्पन्न
इस बीमारी में हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली ही हमारी दुश्मन बन जाती है. मतलब, शरीर के रोगों से लड़ने वाले सिपाही ही शरीर का नाश करने लगते हैं. इससे तंत्रिकाओं का फेल होना और धीरे-धीरे मल्टी ऑर्गन फेलियर जैसी स्थिति उत्पन्न होती है. आईसीएमआर की टीम ने खतरे को भांपते हुए पहले ही सरगुजा का दौरा किया है और यहां के चिकित्सकों को इस बीमारी से निपटने और सावधानी बरतने की ट्रेनिंग दी है.
धीरे-धीरे सांस लेने में होने लगती है दिक्कत
महामारी नियंत्रण कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डॉ. शैलेन्द्र गुप्ता ने बताया कि गुलियन बैरे सिंड्रोम नई बीमारी नहीं है, लेकिन इंडिया में इसके मरीज कम ही मिलते थे. हाल ही में कोरिया जिले में 5 से ज्यादा मरीज मिले हैं. यह बीमारी वायरल इन्फेक्शन, बैक्टीरियल इन्फेक्शन या वैक्सीन के बाद शरीर में बनने वाली रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण होती है. इस बीमारी में नसों की तंतु, जो मांसपेशियों के संकुचन के लिए आवश्यक होती हैं, उनके विरुद्ध एंटीबॉडी बन जाती है. जिससे मांसपेशियां काम करना बंद कर देती हैं. शुरुआत में मरीज के पैर में जलन और खुजली होती है और धीरे-धीरे सांस लेने में दिक्कत होने लगती है.
इम्यूनोग्लोबिन है इस बीमारी का इलाज
ध्यान देने वाली बात है कि इन्फेक्शन के एक्टिव रहते यह बीमारी नहीं होती है. जैसे ही मरीज ठीक होता है, उसके बाद यह बीमारी शुरू होती है. सरगुजा में 2 संदिग्ध मरीज मिले हैं, जिन्हें गाइडलाइन के अनुसार एम्स भेजा गया है. इस बीमारी का इलाज इम्यूनोग्लोबिन है, जो काफी महंगा है और एम्स में उपलब्ध है. इसका इलाज स्थानीय स्तर पर नहीं किया जा रहा है. मरीज के सैंपल आईसीएमआर पुणे और सीएमसी वेल्लोर भेजे जाते हैं. एक इंजेक्शन का खर्चा एक लाख से ढाई लाख तक होता है. इस बीमारी का औसतन एक लाख की आबादी में एक व्यक्ति को होने का चांस रहता है, लेकिन मृत्यु दर 2 से 3 प्रतिशत है. यह बीमारी बच्चों में नहीं होती है, बुजुर्गों को ज्यादा खतरा होता है, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से 18 से 45 साल के लोगों में यह बीमारी ज्यादा देखी जा रही है.