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A Journey from Colombo to Pakistan: कोलंबो से कराची के लिए शुरू हुआ यह सफर इस तरह खत्म होगा, यह किसी ने नहीं सोचा था. महाराष्ट्र के लोनावला में हुई इस घटना से पूरी दुनिया स्तब्ध रह गई थी. क्या है पूरा मामल…और पढ़ें

हाइलाइट्स
- श्रीलंका के कोलंबो से पुणे के लिए उड़ा था यह प्लेन.
- पुणे से मुंबई होते हुए कराची जाने वाला था प्लेन.
- भारत की पहली एयरलाइंस टाटा का था यह प्लेन.
A Journey from Colombo to Pakistan: यह सफर कोलंबो से शुरू होकर भारत के दो शहरों से होते हुए पाकिस्तान में खत्म होना था. इस सफर के लिए टाटा एयरलाइंस का प्लेन अपने तय समय पर कोलंबो से टेकऑफ हुआ और अरब महासागर पार कर पुणे पहुंच गया. पुणे से इस प्लेन को मुंबई और मुंबई से कराची के लिए रवाना होना था. यह प्लेन पुणे से मुंबई के लिए उड़ा तो, लेकिन कभी वहां पहुंचा नहीं.
दरअसल, मुंबई पहुंचने से पहले लोनावला में कुछ ऐसा हुआ, जिसकी जानकारी मिलने के बाद पूरी दुनिया स्तब्ध रह गई थी. दरअसल, यह पूरी कहानी भारत की आजादी से पहले की है और उन दिनों पाकिस्तान का कराची शहर भी भारत का हिस्सा हुआ करता था. उन दिनों भारत में एक ही इकलौती एयरलाइंस थी, जिसका नाम टाटा एयरलाइंस था. इस एयरलाइंस को 1932 में जेआरडी टाटा स्थापित किया था.
रिपोर्ट्स के अनुसार, 4 अगस्त 1943 को स्टिंसन मॉडल का यह प्लेन अपने शेड्यूल फ्लाइट पर कोलंबो से पुणे के लिए रवाना हो गया. यह प्लेन अपने शेड्यूल पर कोलंबो से रवाना होकर पुणे पहुंच गया. पुणे पहुंचने तक सबकुछ ठीक था, लेकिन आगे जो हुआ वह हर किसी को स्तब्ध करने के लिए काफी था. दरअसल, VT-AQW रजिस्ट्रेशन नंबर का यह प्लेन लोनावला के ऊपर था और मुंबई की तरफ बढ़ रहा था.
अचानक लोनावला का मौसम बहुत बिगड़ गया. यह प्लेन खराब मौसम की वजह से उत्पन्न हुई चुनौती को पार करने में असफल रहा और लोनावला की पहाड़ियों में ही क्रैश हो गया. हादसे के समय इस प्लेन में कुछ छह लोग सवार थे, जिसमें तीन पैसेंजर और तीन केबिन क्रू शामिल थे. लोनावला की पहाड़ियों में हुए इस हादसे में सभी पैसेंजर्स और क्रू-मेंबर्स की मौत हो गई थी.
रिपोर्ट्स के अनुसार, जांच में यह पता चला कि यह एयरक्राफ्ट खराब मौसम में पहाड़ की ढलान से जा टकराया. संभावना जताई गई कि खराब मौसम के चलते लोनावला की पहाडि़यों की दृश्यता शायद कम हो गई थी. कम दृश्यकता के बीच मुश्किल रास्तों से बाहर निकलना इस एयरक्राफ्ट के लिए मुश्किल हो गया. चूंकि उन दिनों जीपीएस और टेरिन वार्निंग सिस्टम जैसे नेविगेशन सिस्टम नहीं थे, लिहाजा प्लेन को हादसे से नहीं बचाया जा सका.