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बुंदेलखंड महाविद्यालय में प्रबंध समिति और पूर्व प्राचार्य बाबूलाल तिवारी के बीच जमीन और संपत्ति पर कब्जे को लेकर विवाद है. तिवारी पर अवैध निर्माण, दुरुपयोग और न्यायालय आदेशों की अवहेलना के आरोप लगे हैं.

जानकारी देते प्रबंधक
झांसी- बुंदेलखंड और झांसी की सबसे प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में शुमार बुंदेलखंड महाविद्यालय इन दिनों एक गहरे विवाद में घिरा हुआ है. यह विवाद महाविद्यालय की प्रबंध समिति को लेकर है, जहां एक ओर महाविद्यालय की मूल संस्था है तो दूसरी ओर वह संस्था है जिसने बाद में कार्यभार संभाला. यह टकराव अब ‘असली बनाम नकली’ की बहस बनकर रह गया है. स्थिति तब और गंभीर हो गई जब इसमें व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गए.
पूर्व प्राचार्य पर अवैध कब्जे का आरोप
प्रबंध समिति ने महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य और वर्तमान शिक्षक विधायक बाबूलाल तिवारी पर गंभीर आरोप लगाए हैं. प्रबंध समिति के प्रबंधक मनोहर लाल बाजपेई के अनुसार, तिवारी ने महाविद्यालय की जमीन पर अवैध निर्माण कर कब्जा जमा लिया है और संपत्ति का निजी उपयोग, जैसे कि गाड़ियों की पार्किंग के लिए दुरुपयोग किया जा रहा है.
भ्रमित करने वाले दस्तावेज और जमीन की हेरा-फेरी
प्रबंधक का कहना है कि जिस जमीन पर निर्माण किया गया है, वह महाविद्यालय की हॉस्टल से संबंधित भूमि है. हालांकि विक्रय पत्र पर अंकित जमीन नंबर किसी अन्य स्थान का है, जिससे दस्तावेज की प्रामाणिकता पर प्रश्न उठते हैं. चौहद्दी भी गलत तरीके से दर्शाई गई है, जो कि कथित रूप से भ्रामक है.
शिक्षक कॉलोनी और अन्य क्षेत्रों पर कब्जे के आरोप
इतना ही नहीं, प्रबंध समिति ने यह भी आरोप लगाया कि महाविद्यालय की शिक्षक कॉलोनी के रास्ते का भी दुरुपयोग किया गया है. निजी विद्यालयों की बसें और गाड़ियां इस रास्ते से गुजरती हैं, जबकि इस पर जनप्रतिनिधि का कोई अधिकार नहीं है.
झांसी विकास प्राधिकरण की अस्वीकृति के बावजूद निर्माण
प्रबंधक ने जानकारी दी कि 24 जून 2017 को झांसी विकास प्राधिकरण द्वारा भवन के मानचित्र को अस्वीकृत किया गया था, फिर भी निर्माण कार्य किया गया. यही नहीं, शिक्षक कॉलोनी में अवैध कब्जे को उच्च न्यायालय के आदेश पर हटाया गया, लेकिन वर्षों से उसका किराया नहीं चुकाया गया, जिससे शासन को लाखों रुपये का नुकसान हुआ.
प्रबंध समिति के चुनाव में भी हस्तक्षेप का आरोप
प्रबंधक का यह भी दावा है कि वर्तमान जनप्रतिनिधि अपने पद के प्रभाव का उपयोग करके प्रबंधक के रिक्त पद पर होने वाले चुनाव को रोकने का प्रयास कर रहे थे. हालांकि, उच्च न्यायालय के आदेश के चलते यह प्रयास सफल नहीं हो सका और चुनाव संपन्न कराए गए.