मधुबनी. मधुबनी जिले के कुछ हिस्सों में जूड़ शीतल के दिन एक ऐसा खेल खेला जाता है, जिसे सुनकर आप दंग रह जाएंगे. यहां सदर अनुमंडल क्षेत्र में मंगलवार को जूड़ शीतल पर्व के अवसर पर एक बार फिर परंपरागत पत्थरबाजी और डंडेबाजी का आयोजन हुआ. दर्जनों गांवों के लोग खाली मैदान में एकत्र होकर आपस में जानबूझकर एक-दूसरे पर प्रहार करते हैं. मान्यता है कि इस खेल से गांव की नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती हैं.
दरअसल, कलुआही, राजनगर और रहिका थाना क्षेत्र के डोकहर, बेलभार, नाजीरपुर, शिविपट्टी, गांवों के बीच लंगशाही नहर के पास इस साल भी दोनों पक्षों के बीच जमकर पत्थरबाजी हुई. इस घटना में दर्जनों लोगों के घायल होने की सूचना है. हालांकि, प्रशासन की ओर से अब तक किसी प्रकार की आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है. जिसका कारण यह है कि ये परंपरा के तौर पर करते हैं.
कई बार हो चुकी है घटना
बताया जा रहा है कि यह परंपरा डोकहर, नाजीरपुर, बेलाही, बहरबन बनाम शिविपट्टी और बेल्हवार गांवों के बीच सदियों से चली आ रही है. हर साल जूड़ शीतल के दिन यह पत्थरबाजी होती है, जिसे स्थानीय लोग एक ‘खेल’ के रूप में देखते हैं. हालांकि, सुरक्षा के मद्देनजर प्रशासन द्वारा कलुआही, राजनगर और रहिका थाना क्षेत्रों में भारी पुलिस बल की तैनाती की गई थी. बीडीओ, सीओ और थानाध्यक्ष स्वयं मौके पर मौजूद थे और स्थिति पर नजर बनाए हुए थे बावजूद इसके, परंपरा के नाम पर पथराव की घटना को रोका नहीं जा सका.
बता दें कि सदर एसडीओ ने कई बार प्रथा को समाप्त करने का प्रयास किया था, लेकिन उस दौरान उनकी गाड़ी पर भी पथराव किया गया था, जिससे उन्हें मौके से भागना पड़ा था, बाद में कई लोगों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की गई थी, फिर भी यह परंपरा समाप्त नहीं हो सकी. इस पत्थरबाजी की सबसे खास बात यह है कि अब तक इसमें घायल होने के बावजूद किसी ने भी प्राथमिकी दर्ज नहीं कराई है. ग्रामीण इसे पूर्वजों की परंपरा मानते हैं. हालांकि, इसका कोई ठोस धार्मिक या ऐतिहासिक आधार नहीं मिला है. बस सदियों से करते आए है और अलग-अलग जगहों से लोग इसे देखने भी आते हैं.
पढ़िए ग्रामीणों ने क्या कहा
रघुनि देहठ पंचायत के सरपंच और बेल्हवार निवासी हेमंत कुमार झा ने बताया कि यह परंपरा कई पीढ़ियों से चली आ रही है. पहले यहां कुश्ती का आयोजन होता था, जो अब समाप्त हो चुका है, और उसकी जगह पत्थरबाजी शुरू हो गई है. उन्होंने बताया कि ग्रामीणों और प्रशासन की जागरूकता के कारण इस परंपरा में अब तक लगभग 80% कमी आई है, लेकिन यह पूरी तरह खत्म नहीं हुई है. उसी प्रखंड के निवासी वैभव झा ने लोकल 18 को बताया कि यह एक पुरानी परंपरा है. पहले लोग बोरी भात खाने के बाद कुश्ती खेलते थे, लेकिन अब यह परंपरा उचित नहीं लगती. इससे लोग बेवजह चोटिल और घायल होते हैं, फिर भी इसे आज भी निभाया जा रहा है.
उन्होंने कहा कि कई बार प्रशासन से इस परंपरा को बंद करने की मांग की गई है, क्योंकि इसका कोई वैज्ञानिक, सामाजिक या नैतिक औचित्य नहीं है. करीब 30-40 साल पहले इसी खेल में एक बच्चे की मृत्यु भी हो चुकी है. बेल्हवार के निवासी अरविंद झा ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी इस खतरनाक और निरर्थक परंपरा से दूरी बना रही है. समाज में शांति और सद्भाव बनाए रखने के लिए अब समय आ गया है कि इस परंपरा को पूरी तरह समाप्त कर दिया जाए.