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छत्तीसगढ़ की एक विशेष पिछड़ी जनजाति भुंजिया ख़ास वजह से जानी जाती है. इस जनजाति की महिलाओं के लिए उनकी रसोई काफी महत्वपूर्ण होती है. इसे रसोईघर की जगह लाल बंगला कहा जाता है.

छत्तीसगढ़ के सुदूर इलाकों में रहती है भुंजिया जनजाति (इमेज- फाइल फोटो)
भारत में कई जनजातियां रहती हैं. कुछ अब समय के साथ मॉडर्न हो गई हैं. ये आम लोगों की तरह शहरों में रहते हैं. इनकी लाइफस्टाइल आम लोगों की तरह ही है. लेकिन कुछ खास जनजातियां हैं जो आज भी सदियों पुराने तरीके से ही अपना जीवन बिता रहे हैं. ये लोग मॉडर्न जीवन के प्रभाव से काफी दूर हैं. ना सिर्फ इनका रहन-सहन पिछड़ा है बल्कि ये अपने रीति-रिवाज भी सदियों पुराने वाले ही मानते हैं.
ऐसी ही एक जनजाति है छत्तीसगढ़ की भुंजिया जनजाति. भुंजिया जनजाति के लोग सुदूर ग्रामीण इलाकों में रहते हैं. ये लोग आज भी अपने सदियों पुराने रिवाज मानते हैं. भुंजिया जनजाति खास कारण से जानी जाती है. इस जनजाति की महिलाओं के लिए उनकी रसोई जान से ज्यादा प्यारी होती है. इसे इस जनजाति के लोग लाल बंगला के नाम से जानते हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि अगर बाहर का कोई भी शख्स इनकी रसोई यानी लाल बंगला को छू लेता है तो ये लोग अपने किचन को तोड़ देती हैं.
घर बनाने का है खास नियम
इस जनजाति के लोगों का घर कई नियमों के दायरे में बनाया जाता है. घर बनाने के लिए लकड़ी और बांस का प्रयोग किया जाता है. घर के मर्द ही लकड़ियां तोड़ते हैं. इस दौरान उनका उपवास रहता है और वो प्रकृति मां से माफ़ी मांगते हुए लकड़ी काटते हैं. इसके बाद घर के मर्द ही इसका निर्माण करते हैं. सबसे ख़ास बात कि ये लोग घर के अंदर रसोई नहीं बनाते. घर की महिलाएं इसे लाल मिट्टी से बाहर बनाती है और इसमें बाहर के किसी शख्स की एंट्री बैन होती है. रसोई को लाल बंगला के नाम से जाना जाता है.