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मां सीता की प्यास बुझाने वाली दाहा का बुरा हाल, सीवान के एक्सपर्ट्स ने भी लोगों को चेताया


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Daha river in siwan: इस नदी का इकोलॉजिकल इंडिकेटर भी रेड जोन में है. स्थानीय एक्सपर्ट बताते हैं कि दाहा नदी का एक छोर गंडक से जुड़ा है तो दूसरी तरफ वह सारण के मांझी में सरयू में जाकर मिलती है.

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दाहा

दाहा नदी

सीवान: बिहार में बाणेश्वरी नदी नाम दाहा है. इस नदी के बारे में कहा जाता है कि किसी समय इसने मां सीता की प्यास बुझाई थी लेकिन, आज इसका हाल ऐसा है कि यह खुद ही बुझ गई है. इसमें सिर्फ नाम का पानी है. इसके पीछे की बड़ी वजह नदी में शहरों का गिरने वाला गंदा पानी है. इस नदी में रोज लोगों के घरों का कई मिलियन गंदा पानी गिरता है. इन हालातों के चलते शहर के बीचों बीच से गुजरती यह दाहा नदी आज अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रही है. भगवान लक्ष्मण के बाणों से बनी बाण गंगा नदी आज विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी है.

बाण गंगा नदी
मान्यता है कि गोपालगंज जिले के सासामुसा के समीप मां सीता को जब प्यास लगी और आस-पास पानी की व्यवस्था नहीं थी तो भगवान राम के आदेश पर लक्ष्मण ने अपने बाणों से धरती के अंदर छेद कर पानी निकाला था. इस कारण इसका नाम बाण गंगा पड़ा. स्थानीय लोग बताते हैं कि कुछ समय पहले तक इस नदी का जल इतना स्वच्छ था कि लोग इसके पानी को सिर्फ नहाने ही नहीं बल्कि खाना बनाने के लिए भी इस्तेमाल करते थे. आज नदी की स्तिथि काफी खराब हो चुकी है और अब इस नदी में कूड़े कचरे का ढेर लगा रहता है. नदी में मृत जन्मे बच्चों और जानवरों के शव को भी बहाया जाता है. इससे यह पवित्र नदी अब गंदे नाले के रूप में बदल गई है.

विशेषज्ञों ने दी ये चेतावनी
जीव विज्ञान के पूर्व एचओडी और विशेषज्ञ डॉ रविंद्र पाठक बताते हैं कि जिस समय हम शोध कर रहे थे तब इस नदी में 64 प्रजातियों की मछलियां पाई जाती थीं. अब प्रदूषण और जल स्तर की कमी के कारण इसमें मात्र 34 तरह की ही मछलियां रह गई हैं. उन्होंने यह भी बताया कि इनमें कई मछली विलुप्त होने की कगार पर हैं. वे बताते हैं कि अगर समय रहते इस नदी का संरक्षण नहीं किया गया तो आने वाले समय में इस नदी के प्रदूषण से आम जन जीवन भी प्रभावित हो जायेगा और बीमारियों की संख्या बढ़ जाएगी.

इस नदी का इकोलॉजिकल इंडिकेटर भी रेड जोन में है. इस कारण काइरोनोमस लारवा के पांच वेरायटी अभी इस नदी में मौजूद हैं. इस कारण प्रदूषण काफी तेजी से बढ़ रहा है. यही हाल रहा तो आने वाले समय में इससे आमजन जीवन का प्रभावित होना तय है.

जय प्रकाश विश्वविद्यालय में पदस्थापित जीव विज्ञान की एच ओ डी डॉ रीता कुमारी बताती हैं कि 2009 में जब वे पीएचडी के लिए इस नदी पर शोध कर रही थी उस समय इस नदी में 64-65 तरह की मछलियों की प्रजाति मिली थी. अब आज उनकी संख्या नगण्य हो गई है. वे बताती हैं कि उनकी छात्रा ने बायोकेमिकल पर शोध किया था जिसमें उसने दिखाया था कि कैसे सिवान शहर के अस्पतालों के कचरे और नाले इस दाहा नदी में गिरते है और उसके कारण जो बैक्टीरिया इस नदी में पाया जा रहा है वो एंटी बैक्टीरियल रेसिस्टेंट है.

डॉ कुमारी ने बताया की वह रिटायर लोगों और कुछ संस्थाओं की मदद से नदी की सफाई करने का प्रयास कर रही हैं उससे बहुत बदलाव की संभावना नहीं है. उनका कहना है कि इसमें सरकारी मदद के साथ लोगों को भी जागरूक होना होगा तभी कुछ हो सकता है.

स्थानीय एक्सपर्ट बताते हैं कि दाहा नदी का एक छोर गंडक से जुड़ा है तो दूसरी तरफ वह सारण के मांझी में सरयू में जाकर मिलती है. गंडक के मुहाने पर स्लुइस गेट है. यदि सरकार की पहल हो कि इसके जरिए गंडक और सरयू को जोड़ा जा सके तो तीन जिलों सीवान, छपरा और गोपालगंज के लोंगो को काफी लाभ मिलेगा. इससे सिंचाई से लेकर मछली पालन तक आसान होगा. इससे नीली क्रांति को बढ़ावा मिलेगा. गंडक में हर साल आने वाली बाढ़ से भी तीनों जिलों का बचाव हो जायेगा.

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