Thursday, April 17, 2025
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छत्तीसगढ़ की जलवायु के लिए अनुकूल है कुसुम की ये वैरायटी, इसकी खेती से मालामाल हो सकते हैं किसान


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Agriculture Tips: कुसुम की खेती के लिए उन्नत बीज का होना जरूरी है. इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के द्वारा आई.जी.के.वी. कुसुम नाम उन्नत किस्म विकसित किया गया है. यह बीज प्रति हेक्टेयर 10 किलोग्राम पर्य…और पढ़ें

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कुसुम

कुसुम की खेती

हाइलाइट्स

  • छत्तीसगढ़ की जलवायु के लिए कुसुम की नई किस्म अनुकूल है.
  • प्रति हेक्टेयर 10 किलोग्राम बीज पर्याप्त है.
  • कुसुम की खेती से किसान आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो सकते हैं.

रायपुर. छत्तीसगढ़ की कृषि प्रधान भूमि और मौसम ऐसी कई फसलों के लिए आदर्श हैं, जो कम लागत में अधिक मुनाफा दे सकती हैं. ऐसी ही एक फसल कुसुम है. जिसकी उन्नत किस्म को अपनाकर प्रदेश के किसान अपनी आर्थिक स्थिति में बड़ा सुधार ला सकते हैं. इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के द्वारा आई.जी.के.वी. कुसुम नाम उन्नत किस्म विकसित किया गया है. यह किस्म विशेष रूप से छत्तीसगढ़ की जलवायु के अनुसार तैयार की गई है, जो न केवल रोग प्रतिरोधक है बल्कि उत्पादन क्षमता में भी बेहतर मानी जाती है.

प्रति हेक्टेयर 10 किलो बीज है पर्याप्त

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार आई.जी.के.वी. कुसुम की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 10 किलोग्राम बीज पर्याप्त है. बीज को बोने से पहले कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज, पी.एस.बी., एजोटोबैक्टर, जे.एस.बी. और के.एस.बी. जैसे जैविक उपचारों के साथ तैयार करना चाहिए. इससे न केवल बीज का अंकुरण बेहतर होता है, बल्कि फसल की प्रारंभिक वृद्धि भी स्वस्थ रहती है. इसकी खेती के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. सिंचाई दो बार करनी होती है. पहली बुवाई के 25 से 30 दिन बाद, और दूसरी 60 से 65 दिन बाद. समय पर सिंचाई से फूलों और बीजों की गुणवत्ता में सुधार आता है.इसके अलावा प्रति हेक्टेयर 5 टन गोबर की खाद के साथ एन.पी.के. 90:40:30 के अनुपात मात्रा में रासायनिक खाद देना चाहिए, जिससे भूमि की उर्वरता बनी रहती है और फसल को सभी जरूरी पोषक तत्व मिलते हैं.

अंकुरण से पहले जरूर कर लें ये काम

अंकुरण के पहले 750 मिलीलीटर ऑक्सीफ्लोरेफेन और अंकुरण पश्चात 125 ग्राम मेट्रीबुजिन प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करना चाहिए. इससे खरपतवारों पर प्रभावी नियंत्रण पाया जा सकता है. आवश्यकतानुसार गुड़ाई भी करनी चाहिए. वहीं इमिडाक्लोप्रिड या थायोमेथोक्सम 0.25 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से कीटों का प्रकोप कम होता है. साथ ही कार्बेन्डाजिम और मैन्कोजेब का मिश्रण पत्तियों पर छिड़कने से फफूंद रोगों पर नियंत्रण पाया जा सकता है. कुसुम यानी करड़ी की खेती किसानों के लिए फायदेमंद है,  यह एक तिलहनी फ़सल है. इसके बीजों से तेल निकाला जाता है और इसके फूलों से शरबत, साबुन, पेंट, वार्निश, लाईनोलियम वगैरह बनाए जाते हैं.

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर द्वारा विकसित की गई कुसुम की यह किस्म बाजार में अच्छी कीमत दिला सकती है. किसानों को इसके लिए कृषि विज्ञान केंद्रों से तकनीकी मार्गदर्शन और प्रशिक्षण भी मिल रहा है. यदि किसान वैज्ञानिक विधियों को अपनाएं, तो कुसुम की यह फसल उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बना सकती है।

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