रायपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सरकारी कर्मचारियों के पक्ष में ेक बड़ा फैसला सुनाया है. अदालत का कहना है कि राज्य सरकार किसी कर्मचारी की पेंशन, ग्रेच्युटी या लीव एनकैशमेंट को बिना कानूनी प्रावधान के नहीं ले सकती. कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार इसे ‘प्रशासनिक निर्देशों’ के नाम पर भी नहीं ले सकती है. कोर्ट ने यह फैसला राजकुमार गोनेकर नाम के एक दिवंगत सरकारी कर्मचारी के मामले में सुनाया है. गोनेकर की पेंशन से 9.2 लाख रुपये की वसूली के आदेश को कोर्ट ने रद्द कर दिया.
बता दें, यह फैसला जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की बेंच ने दिया है. उन्होंने कहा कि ग्रेच्युटी और पेंशन कोई दान नहीं हैं. कर्मचारी इन्हें अपनी लंबी, लगातार, वफादार और बेदाग सेवा से कमाता है. यह एक कर्मचारी का हक है और यह उसकी संपत्ति है. जज ने संविधान के अनुच्छेद 300-A का हवाला देते हुए कहा कि संपत्ति के इस अधिकार को कानून के उचित प्रक्रिया के बिना नहीं छीना जा सकता. राज्य सरकार का पेंशन, ग्रेच्युटी या लीव एनकैशमेंट का हिस्सा बिना किसी कानूनी प्रावधान के और प्रशासनिक निर्देश के तहत लेने का प्रयास स्वीकार्य नहीं है.
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इसके साथ ही कोर्ट ने यह फैसला मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा के रहने वाले राजकुमार गोनेकर के मामले में दिया. गोनेकर के वकील ने कोर्ट को बताया था कि गोनेकर को 29 मार्च 1990 को सहायक निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था. बाद में 2000 में उन्हें उप निदेशक के पद पर पदोन्नत किया गया. हालांकि, ग्रेडेशन लिस्ट में कुछ सुधारों के कारण, उन्हें सहायक निदेशक के पद पर पदावनत कर दिया गया. कोर्ट के आदेश के बाद, उन्होंने उप निदेशक के रूप में काम किया और 31 जनवरी 2018 को सेवानिवृत्त हो गए.
अपनी सेवा के दौरान, गोनेकर को गबन के आरोप का नोटिस मिला. उन्होंने अपने जवाब में आरोपों से इनकार किया और कहा कि उन्होंने कानून के अनुसार काम किया. सेवानिवृत्ति के बाद, 13 दिसंबर 2018 को उन्हें एक कारण बताओ नोटिस जारी किया गया. उन्होंने 25 जनवरी 2019 को अपना जवाब दाखिल किया और फिर से आरोपों का खंडन किया.
अब इस मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा कि गोनेकर की पेंशन से 9.23 लाख रुपये की वसूली का आदेश इन तथ्यों पर ठीक से विचार किए बिना और उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना पारित किया गया था. राज्य ने इसका विरोध किया और कहा कि प्रक्रिया का पालन किया गया था. राज्य ने यह भी कहा कि गोनेकर का जवाब मिलने और सरकार द्वारा राशि वसूलने की अनुमति दिए जाने के बाद ही कार्रवाई की गई थी.
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जस्टिस गुरु ने कहा कि मूल याचिकाकर्ता, गोनेकर की मृत्यु 20 जून 2024 को हो गई थी. इसके बाद उनके कानूनी उत्तराधिकारियों को याचिका में शामिल किया गया. अदालत ने छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1976 के नियम 9 का हवाला दिया. इसमें कहा गया है कि राज्यपाल के पास पेंशन रोकने या वापस लेने या सरकार को हुए नुकसान की वसूली का आदेश देने का अधिकार है. यह तब हो सकता है जब पेंशनर को विभागीय या न्यायिक कार्यवाही में गंभीर कदाचार या लापरवाही का दोषी पाया जाए. गोनेकर को दोषी पाए जाने का कोई सबूत नहीं था. केवल कारण बताओ नोटिस और उनके जवाब थे. इसलिए, वसूली के आदेश को सही नहीं ठहराया जा सकता.