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सहारनपुर में दीपक प्रजापति के मिट्टी से बने वॉटर कैंपर की डिमांड बढ़ी है. ये कैंपर न सिर्फ पानी ठंडा रखते हैं बल्कि सेहत के लिए भी फायदेमंद हैं. कोरोना के बाद हेल्दी चीजों की मांग बढ़ी है.

गर्मियों में बढ़ रही मिट्टी से बनें वाटर कैंपर की डिमांड.
हाइलाइट्स
- सहारनपुर के मिट्टी के वॉटर कैंपर की डिमांड बढ़ी.
- वॉटर कैंपर सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं.
- कोरोना के बाद हेल्दी चीजों की मांग बढ़ी है.
सहारनपुर: गर्मियों का मौसम आते ही लोग ठंडे पानी के लिए तरह-तरह के इंतजाम करने लगते हैं- कोई फ्रिज का सहारा लेता है तो कोई आरओ या कूलर वाले वाटर प्यूरीफायर की तरफ भागता है. लेकिन इन सबके बीच सहारनपुर में मिट्टी से बने वॉटर कैंपर एक बार फिर लोगों की पहली पसंद बनते जा रहे हैं. खास बात ये है कि इन वॉटर कैंपर्स की डिमांड सिर्फ यूपी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उत्तराखंड, हरियाणा और दिल्ली जैसे राज्यों से भी ऑर्डर आ रहे हैं.
सहारनपुर के रहने वाले दीपक प्रजापति पिछले 20 सालों से मिट्टी से बर्तन बनाने का काम कर रहे हैं. उन्होंने 12 साल की उम्र में छोटे-छोटे दीयों से शुरुआत की थी और आज वह बड़े-बड़े बर्तन, वॉटर कैंपर, सुराही और दीगर चीजें बना रहे हैं. उनका कहना है कि इस बार गर्मी की शुरुआत से ही वॉटर कैंपर की डिमांड इतनी बड़ गई है कि वो ऑर्डर पूरे नहीं कर पा रहे है.
वॉटर कैंपर की खासियत क्या है?
मिट्टी से बना यह वॉटर कैंपर न सिर्फ पानी को ठंडा रखता है, बल्कि सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद होता है. दीपक बताते हैं कि इन कैंपर्स में पानी पीने से पाचन तंत्र अच्छा रहता है, गैस की समस्या नहीं होती और शरीर की गर्मी भी संतुलित बनी रहती है. वहीं फ्रिज का पानी जरूरत से ज्यादा ठंडा होता है जिससे कई बार गला खराब हो सकता है या अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं.
Corona के बाद और बढ़ी मांग
दीपक के मुताबिक कोरोना काल के बाद लोग हेल्दी और नैचुरल चीजों की तरफ लौटने लगे हैं. इसी का नतीजा है कि पिछले दो सालों से मिट्टी से बने वॉटर कैंपर की डिमांड में जबरदस्त बढ़ोतरी देखने को मिल रही है. अब तक वो 4 से 5 हजार कैंपर बेच चुके हैं.
5 मिनट में तैयार हो जाता है एक कैंपर
यह वॉटर कैंपर चिकनी मिट्टी से तैयार किया जाता है और इसे एक खास घड़े के आकार में ढाला जाता है. एक कैंपर को बनाने में महज 5 मिनट का समय लगता है, लेकिन फिर उसे सुखाने और फिनिशिंग में भी मेहनत लगती है. कीमत की बात करें तो यह कैंपर 150 से लेकर 300 रुपये तक बाजार में मिल रहा है.
दीपक बताते हैं कि उनके बनाए कैंपर न सिर्फ सहारनपुर बल्कि देहरादून, ऋषिकेश, रुड़की, हरिद्वार, मुजफ्फरनगर, खतौली और शामली जैसे शहरों में भी खूब बिक रहे हैं. डिमांड इतनी है कि कई बार उन्हें मना भी करना पड़ता है.
सरकारी प्रोत्साहन से दोबारा जिंदा हुआ मिट्टी का काम
2014 में भाजपा सरकार के आने के बाद से मिट्टी के काम को बढ़ावा दिया गया. सरकार ने कुम्हारों को प्रशिक्षण, मशीनें और बाजार देने की दिशा में कई कदम उठाए. इससे इस पारंपरिक उद्योग को एक नई जान मिली और अब लोग इसे फिर से अपनाने लगे हैं.