शिखा श्रेया/रांची: हटिया स्थित डीआरएम ऑफिस के बाहर लोको पायलटों ने आखिरकार हिम्मत दिखाते हुए अपनी तकलीफों को दुनिया के सामने रखा है. झारखंड की राजधानी में ये धरना पिछले दो दिनों से जारी है और लोको पायलट अपनी बुनियादी मांगों को लेकर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं. उनकी व्यथा कोई आम शिकायत नहीं है , यह एक ऐसा संघर्ष है जो मानसिक, शारीरिक और पारिवारिक जीवन पर सीधा असर डालता है.
सीएस कुमार, जो खुद एक लोको पायलट हैं, कहते हैं, “हम हर दिन 14 से 16 घंटे तक ड्यूटी करते हैं. कभी-कभी ये समय 18 घंटे भी पार कर जाता है. हमारे पास अपने लिए, बच्चों के लिए, परिवार के लिए वक्त ही नहीं होता.”
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि ट्रेन इंजन में शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं है. अमरजीत नामक लोको पायलट कहते हैं, “हम एक घंटे तक बाथरूम रोक के रखते हैं. सामने कैमरा होता है, 14 घंटे तक हमें रोबोट की तरह बैठकर ध्यान देना होता है. पल भर के लिए आंखें भी नहीं झपका सकते.”
अजय रंजन, जो कई वर्षों से रेलवे में सेवा दे रहे हैं, कहते हैं कि “कभी भी ड्यूटी का कॉल आ सकता है रात 2 बजे, सुबह 5 बजे, कभी भी. हमारी पत्नियां भी रात में नाश्ता बनाती हैं. हमारा पूरा परिवार प्रभावित हो रहा है. और सबसे बड़ा झूठ ये है कि 8 घंटे की ड्यूटी का दावा किया जाता है, जबकि हकीकत में हम 16-18 घंटे काम करते हैं.”
लोको पायलटों की ये व्यथा केवल ड्यूटी घंटों की नहीं है, यह सिस्टम की खामियों की एक गूंज है बिना रेस्ट के काम, ओवरटाइम का कोई भुगतान नहीं, न छुट्टियां, न इंसानी शर्तें.
रेलवे जैसे संवेदनशील और जिम्मेदार संस्थान में कार्यरत लोको पायलटों का मानसिक और शारीरिक तनाव किसी बड़े हादसे की आशंका को जन्म देता है. अब देखना ये है कि उनकी आवाजें रेलवे प्रशासन तक कब और कैसे पहुंचती हैं.