Last Updated:
Pithoragarh News: पिथौरागढ़ के 600 ग्रामीणों के लिए बहुत ही बड़ी खुशखबरी है. उनकी सरकारी नौकरी का रास्ता साफ हो गया है. सुप्रीम कोर्ट की ओर से राज्य सरकार की दायर अपील को खारिज कर दिया गया है.

पिथौरागढ़ के ग्रामीणों के लिए खुशखबरी.
हाइलाइट्स
- पिथौरागढ़ के 600 ग्रामीणों को सरकारी नौकरी का अधिकार मिला.
- सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की अपील खारिज की.
- ग्रामीणों की 19 साल की लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट का फैसला.
देहरादून: उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के लोगों के लिए बहुत ही सुकून के पल हैं. उन्होंने आखिरकार अपने अधिकारों की लंबी लड़ाई जीत ली है. 19 साल तक सरकार से लड़ना आसान नहीं था. मगर, आज पिथौरागढ़ जिले के 600 से अधिक ग्रामीणों ने ये कारनामा करके दिखा ही दिया. उन्हें आखिरकार सरकारी नौकरी का अधिकार मिल गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार की उस विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने ग्रामीणों को दिए गए 19 साल पुराने रोजगार के वादे को चुनौती दी थी. यह फैसला 8 अप्रैल को सुनाया गया, जिससे दशकों से चले आ रहे विवाद का अंत हुआ और ग्रामीणों की नियुक्ति का रास्ता साफ हो गया.
क्या है मामला?
सन् 1992 में नैनी-सैनी एयरपोर्ट के निर्माण के लिए सरकार ने पिथौरागढ़ के 6 गांवों से करीब 27.5 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहित की थी. इस अधिग्रहण से लगभग 600 गांववासी प्रभावित हुए थे. 2006 में स्थानीय प्रशासन ने इन ग्रामीणों से वादा किया कि उन्हें एयरपोर्ट या अन्य सरकारी विभागों में नौकरी दी जाएगी. मगर, सालों साल बीत गए केवल छह लोगों को ही संविदा पर नौकरी दी गई. इससे अधिकतर ग्रामीण बेरोजगार ही रहे.
पहले हाईकोर्ट फिर…
ग्रामीणों को समझ आ गया था कि उनको उनके हक के लिए लड़ाई लड़नी ही पड़ेगी. इसके लिए ग्रामीणों ने ‘नैनी सैनी ग्रामीण विकास समिति’ का गठन किया. साल 2014 में, ग्रामीणों ने उत्तराखंड हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने 2018 में राज्य को 10 सप्ताह के भीतर नौकरी देने का निर्देश दिया. आदेश का पालन करने के बजाय राज्य सरकार ने आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.
यूपी के इस शहर का महादेव से है खास कनेक्शन, भोलेनाथ के त्रिशूल पर टिकी है पूरी नगरी
कोर्ट का सुप्रीम फैसला
8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की विशेष अनुमति याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि हम इस याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं. अदालत ने साफ कहा कि राज्य सरकार का 2006 में दिया गया रोजगार का आश्वासन कानूनी रूप से वैध विचार था, जिसे नकारा नहीं जा सकता. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब राज्य सरकार के सामने हाई कोर्ट के आदेश के अनुपालन का ही विकल्प बचता है.
ग्रामीणों में खुशी
नैनी सैनी समिति के अध्यक्ष कुंदन सिंह महार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर खुशी जताई. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने हमारी 27.5 हेक्टेयर जमीन ली, लेकिन वादे के अनुसार रोजगार नहीं दिया. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला हमारे संघर्ष की जीत है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, उत्तराखंड सरकार को अब 10 सप्ताह के भीतर यह तय करना होगा कि किन ग्रामीणों को सरकारी नौकरी दी जाए.