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चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के प्रोफेसर शैलेंद्र सिंह गौरव की टीम ने जिंक और सिल्वर नैनोपार्टिकल्स से नैनोपेस्टिसाइड स्प्रे तैयार किया है, जो आलू की फसल को बीमारियों से बचाएगा.

आलू की फसल
हाइलाइट्स
- सीसीएसयू ने नैनोपेस्टिसाइड स्प्रे तैयार किया.
- आलू की फसल को बीमारियों से बचाएगा स्प्रे.
- किसानों की लागत घटकर 700-1000 रुपये होगी.
मेरठ: पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में आलू किसानों की प्रमुख फसल मानी जाती है. किसान बंपर पैदावार के साथ बेहतर आमदनी के लिए इसकी खेती करते हैं. हालांकि, फसल में लगने वाली बीमारियों के कारण उन्हें भारी नुकसान भी उठाना पड़ता है. इन समस्याओं से निपटने के लिए अब चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के जेनेटिक्स एंड प्लांट ब्रीडिंग विभाग को एक बड़ी सफलता मिली है.
प्रोफेसर शैलेंद्र सिंह गौरव के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की टीम ने जिंक और सिल्वर नैनोपार्टिकल्स से एक विशेष नैनोपेस्टिसाइड स्प्रे तैयार किया है, जो आलू की फसल को बीमारी से बचाने के साथ ही मानव स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी साबित होगा. उन्होंने बताया कि यह नैनो स्प्रे केमिकल पेस्टिसाइड्स की तुलना में सस्ता, सुलभ और सुरक्षित है.
सेहत में होगा सुधार
इस नैनोपार्टिकल स्प्रे से आलू में जिंक और सिल्वर सूक्ष्म रूप से प्रवेश करेंगे, जिससे उत्पाद न केवल सुरक्षित होंगे, बल्कि पोषक भी. प्रोफेसर गौरव का कहना है कि भविष्य में लोगों को जिंक सप्लिमेंट्स लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि यही ज़िंक हमें आलू के जरिए नेचुरल रूप से मिल सकेगा.
शोध में मिले शानदार परिणाम
शोध में पाया गया कि आमतौर पर 100 ग्राम आलू में 0.5 से 1 मिलीग्राम जिंक पाया जाता है, जबकि नैनोस्प्रे के इस्तेमाल के बाद यह मात्रा बढ़कर 4 से 5 मिलीग्राम हो गई. यह असर 75 पीपीएम जिंक ऑक्साइड स्प्रे ट्रीटमेंट से संभव हुआ है. साथ ही, यह स्प्रे आलू में अर्ली ब्लाइट और लेट ब्लाइट जैसी गंभीर बीमारियों से भी रक्षा करेगा.
खर्च होगा कम, लाभ ज्यादा
परंपरागत पेस्टिसाइड्स पर जहां किसानों को प्रति एकड़ 8,000 से 10,000 रुपये तक खर्च करना पड़ता है, वहीं इस नैनो स्प्रे से यह लागत घटकर 700 से 1,000 रुपये तक रह जाएगी. सबसे खास बात- इस इनोवेशन को भारत सरकार ने पेटेंट भी दे दिया है और जल्द ही इसे किसी कंपनी के माध्यम से बाजार में लाया जाएगा.
शोध टीम में शामिल हैं ये विशेषज्ञ
इस शोध कार्य में प्रोफेसर शैलेंद्र सिंह गौरव के साथ अमरदीप सिंह, ज्ञानिका शुक्ला और संदीप कुमार भी शामिल हैं, जिन्होंने मिलकर यह सफल प्रयोग किया है. यह शोध किसानों के लिए न केवल फायदेमंद होगा, बल्कि आम लोगों की सेहत सुधारने की दिशा में भी मील का पत्थर साबित होगा.