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Tungnath Temple Kapaat Open Date: मूर्तियां ओंकारेश्वर मंदिर से सभा मंडप में विराजमान होंगी. मदमहेश्वर भगवान की चल विग्रह उत्सव डोली 19 मई को शीतकालीन गद्दी स्थल ओंकारेश्वर मंदिर से धाम के लिए रवाना होगी.

दुनिया के सबसे ऊंचे शिव मंदिर के कपाट इस दिन खोले जाएंगे.
रुद्रप्रयाग. देवभूमि उत्तराखंड को भगवान शंकर की क्रीड़ास्थली कहा जाता है. वहीं राज्य में पांच बद्री और पांच केदार स्थित हैं. पांचों बद्री का संबंध भगवान विष्णु से है, तो वहीं पांचों केदारों- केदारनाथ, मद्यमहेश्वर, कल्पेश्वर, रुद्रनाथ और तुंगनाथ का संबंध भोले भंडारी यानी महादेव से है. ओंकारेश्वर मंदिर के मुख्य पुजारी शिव लिंग ने बताया कि दुनिया में सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित भोलेनाथ के पवित्र धाम तुंगनाथ के कपाट शुक्रवार दो मई को मिथुन लग्न में सुबह 10 बजकर 15 मिनट पर खोले जाएंगे. तुंगनाथ बाबा के शीतकालीन प्रवास मर्करेटेश्वर मंदिर मक्कूमठ में आयोजित कार्यक्रम में आचार्य विजय भारत मैठाणी ने कपाट खुलने की तिथि घोषणा की. वहीं पंच केदारों में द्वितीय केदार के नाम से विश्व प्रसिद्ध मदमहेश्वर के कपाट 21 मई को खुलेंगे.
बैसाखी पर्व पर कपाट खोलने और चल विग्रह उत्सव डोली के शीतकालीन गद्दी स्थल ओंकारेश्वर मंदिर से कैलाश रवाना होने की तिथि, शीतकालीन गद्दी स्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में पंचाग गणना के अनुसार घोषित कर दी गई है. मूर्तियां ओंकारेश्वर मंदिर से सभा मंडप में विराजमान होंगी जबकि 19 मई को मदमहेश्वर भगवान की चल विग्रह उत्सव डोली शीतकालीन गद्दी स्थल ओंकारेश्वर मंदिर से धाम के लिए रवाना होगी. इसके बाद डोली कई यात्रा पड़ाव पर श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देकर 21 मई को मदमहेश्वर धाम पहुंचेगी. डोली के धाम पहुंचने पर मदमहेश्वर धाम के कपाट वेद ऋचाओं के साथ ग्रीष्मकाल के लिए खोले जाएंगे.
तुंगनाथ में भोलेनाथ की भुजाओं की पूजा
पुजारी आगे बताते हैं कि दीपावली के बाद 6 महीने के लिए मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाएंगे. रुद्रप्रयाग में समुद्र तल से करीब 3690 मीटर की ऊंचाई पर स्थित तुंगनाथ मंदिर में भोलेनाथ की भुजाओं की पूजा होती है. यहां भगवान शिव के दर्शन इतनी आसानी से नहीं होते हैं बल्कि यहां जाने के लिए करीब तीन किलोमीटर की ट्रेकिंग करनी पड़ती है. यह मंदिर महाभारत काल का बताया जाता है, जिसे पांडवों ने बनवाया था ताकि भगवान शंकर उनसे प्रसन्न हो सकें. इसके अलावा यह भी माना जाता है कि मां पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए यहीं तपस्या की थी. ‘तुंग’ का मतलब हाथ और ‘नाथ’ का मतलब भगवान होता है.
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