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Haldwani News: शादी का यह कार्ड कुमाऊंनी भाषा में छपवाया गया है. दुल्हन निर्मला जोशी (निशा) ने इसे अपने फेसबुक अकाउंट पर शेयर किया. लोग उनकी पहल की जमकर तारीफ कर रहे हैं.

शादी का कार्ड कुमाऊंनी भाषा में छपवाया गया है.
हल्द्वानी. ‘प्रिय ईष्ट मित्रौ दाजू और भुला, ईष्टदेव और द्याप्तोंक आशीर्वाद लिभेर हमरि लाडिल चेली सौभाग्यवती ब्योली निर्मला (निशा) दगड़ि चिरंजीव वर ज्यू हिमांशु ब्याक लगन संस्कार में आपुं चुल न्यूत छू. हम अपुण ईष्ट मित्र एवं पुर परिवार लिभेर तुम्हार स्वागत-सत्कार लिजी इंतजार करूल. हमकूं पुर आश और विश्वास छू कि आप हमार चेली एवं वर ज्यू कूं अपण आर्शीवचन दिणे लिजी जरूर-जरूर शामिल होला.’ कुमाऊंनी भाषा में लिखे इन शब्दों का ठीक वही अर्थ है, जो हिंदी या फिर अंग्रेजी में लिखे विवाह के स्नेह निमंत्रण का होता है. निमंत्रण की भावना भी वही है, फर्क है तो सिर्फ अपनी माटी और जड़ों से जुड़ाव को दिखाने का.
दरअसल इन दिनों सोशल मीडिया पर उत्तराखंड के हल्द्वानी का एक शादी का कार्ड काफी वायरल हो रहा है. इसे खूब पसंद किया जा रहा है क्योंकि यह कार्ड हिंदी या अंग्रेजी में नहीं बल्कि कुमाऊंनी भाषा में छपवाया गया है. दुल्हन का नाम निर्मला (निशा) है और दूल्हे का नाम हिमांशु है. शादी कुमाऊं के प्रवेश द्वार हल्द्वानी में होगी. दुल्हन का परिवार मूल रूप से पिथौरागढ़ जिले और दूल्हे का परिवार टिहरी गढ़वाल जिले का रहने वाला है. विवाह से जुड़ी रस्मों से लेकर विवाह स्थल तक की जानकारी कुमाऊंनी भाषा में लिखी है.
सोशल मीडिया पर हो रही तारीफ
दुल्हन निर्मला जोशी ने अपने फेसबुक पर इस कार्ड को शेयर कर लिखा, ‘अपनी बोली अपनी पहचान. कुमाऊंनी बोली में निमंत्रण पत्र.’ उनकी इस पहल को काफी सराहा जा रहा है. अलग-अलग पेज पर इसे काफी शेयर किया जा रहा है. काफी यूजर्स उन्हें कुमाऊंनी बोली में ही बधाई और शुभकामनाएं दे रहे हैं और अपनी भाषा को इस तरह बढ़ावा देने के लिए आभार भी व्यक्त कर रहे हैं.
भाषा से खत्म हो रहा जुड़ाव
गौरतलब है कि उत्तराखंड की युवा पीढ़ी का अपनी भाषा से जुड़ाव खत्म होता जा रहा है. वे पढ़ाई, नौकरी या बिजनेस के लिए दूसरे राज्यों का रुख करते हैं और वहां रहकर अपनी बोली को भूल जाते हैं या फिर उन्हें इसे बोलने में शर्म महसूस होती है. इन सबके बीच निर्मला जोशी जैसे लोग भी हैं, जो पहाड़ की सभ्यता संस्कृति के साथ ही पहाड़ की भाषा को भी सहेजने का काम कर रहे हैं. उत्तराखंड की लोक भाषाओं के संरक्षण के लिए प्रयासरत मुकेश जोशी कहते हैं कि युवा पीढ़ी की इस तरह की पहल कुमाऊंनी को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करने की कोशिशों को बल देगी.