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Chhatarpur Ajab Gajab Shadi ki Parampara: छतरपुर में बिना मिट्टी के बर्तन और दीयों के शादी पूरी नहीं होती. जानिए इन बर्तनों का क्या महत्व है और क्यों दूल्हा बारात निकलने से पहले मिट्टी के दीयों को तोड़ता है.

छतरपुर की शादियों में मिट्टी के बर्तनों का रहस्य
हाइलाइट्स
- छतरपुर में मिट्टी के बर्तन के बिना शादी अधूरी मानी जाती है.
- मंडप में 5 घड़े और दीपक रखने की पुरानी परंपरा है.
- दूल्हा बारात से पहले कच्चे दीयों को लात मारता है.
शादी में मिट्टी बर्तन का महत्व. एक बार फिर से शादी के शुभ मुहूर्त शुरू हो गए हैं और छतरपुर जिले के बाजारों में रौनक देखने को मिलने लगी है. बाजार में साड़ी, गहनों से लेकर बर्तन की खरीददारी शुरू हो गई है. लेकिन क्या आपको पता है जिले में होने वाली शादियों में बिना मिट्टी बर्तन के शादी नहीं होती है.
शादी की मैहर रस्म में लगता है
सालों से मिट्टी से कई तरह के बर्तन बनाने वाली तुलसा बाई बताती हैं कि मैहर में 1 घड़ा लगता है और 2 डबरा लगते हैं. कलश के लिए डबरा लगता है. साथ ही 1 तिल्लइया,1 कूड़ा और 1 मटका लगता है.
मंडप में रखने की है पुरानी परंपरा
मंडप के नीचे 5 घड़े रखे जाते हैं जिसको ढक्कन से ढक दिया जाता है. इसमें चावल और गेहूं रख देने हैं. फिर इसके ऊपर दीपक जलाकर रख देना है. साथ ही मंडप के नीचे 1 बड़ा मटका (घड़ा)भी लगता है. मिट्टी के बर्तन रखना एक पुरानी परंपरा है. छतरपुर जिले की शहर की शादी आजहो या गांव की दोनों जगह मिट्टी के बर्तन शादियों में होने जरूरी है. ये बहुत ही पुरानी परंपरा है.
कच्चे दियों का भी है शादी में महत्व
तुलसा बाई बताती हैं कि जब लड़का बारात के लिए जाता है तो बारात जाने से पहले उसकी निकासी होती है. निकासी मतलब गांव या शहर के मंदिरों से भगवान का आशीर्वाद लेकर बारात के लिए तैयार होना. भगवान का आशीर्वाद लेने के बाद दूल्हा घर के द्वार पर रखे धागे से बंधे कच्चे दियों को लात से मारता है तभी बारात के लिए निकलता है. दियों को लात मारने के बाद घर की तरफ़ नहीं देखता सीधे ससुराल जाता है.