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टाइम मैगजीन की 100 सबसे प्रभावशाली हस्तियों में मोहम्मद यूनुस का नाम भी शामिल है. लेकिन टाइम्स मैगजीन के इस चयन पर अब सवाल उठने लगे हैं. सवाल यह कि मोहम्मद यूनुस पर कौन मेहरबान है और किस वजह से TIME ने टॉप 100 …और पढ़ें

टाइम मैगजीन की दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली हस्तियों की लिस्ट में मोहम्मद यूनुस का भी नाम. (फाइल फोटो)
हाइलाइट्स
- टाइम की 100 प्रभावशाली हस्तियों में मोहम्मद यूनुस शामिल.
- यूनुस पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया दरकिनार करने का आरोप.
- मोहम्मद यूनुस को अमेरिका से समर्थन प्राप्त होने का दावा
दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली हस्तियों को लेकर टाइम मैगजीन की हालिया लिस्ट में नोबेल पुरस्कार विजेता और बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस का नाम शामिल किया गया है. लेकिन टाइम्स मैगजीन के इस चयन पर अब सवाल उठने लगे हैं. आलोचकों का आरोप है कि यूनुस ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया को दरकिनार कर सत्ता हथियाई.
सवाल उठ रहे हैं कि आखिर मोहम्मद यूनुस पर कौन मेहरबान है, जिसके दमपर पहले तो उन्होंने लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई शेख हसीना का ही देश निकाला करवाकर सत्ता हथिया ली. मोहम्मद यूनुस ने न सिर्फ बांग्लादेश के लोकतांत्रिक ढांचे को चोट पहुंचाई, बल्कि भारत से भी बेवजह की दुश्मनी पाल रखी है. भारत, जो हमेशा बांग्लादेश के विकास और स्थिरता के पक्ष में रहा है, उसके खिलाफ यूनुस की बयानबाज़ी और नीतिगत टकराव यह दिखाते हैं कि वह केवल शांति का दिखावा करते हैं, असल में उनका रवैया बिल्कुल विपरीत है.
यूनुस के पीछे किसका हाथ?
वैसे मोहम्मद यूनुस को अमेरिका से समर्थन प्राप्त है. माना जाता है कि पिछली जो बाइडन सरकार उनपर खासे मेहरबान थे. बांग्लादेश की सत्ता मिलने के बाद सितंबर 2024 में यूनुस और बाइडन के बीच हुई मुलाकात की तस्वीरों ने इसे और स्पष्ट किया.
शेख हसीना ने भी मोहम्मद यूनुस पर विदेशी ताकतों के साथ मिलकर बांग्लादेश को अस्थिर करने का आरोप लगाया था. उन्होंने यूनुस को ‘सत्ता का भूखा’ बताया था, जो देश को बर्बाद कर रहे हैं.
यह विडंबना ही है कि जिन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिला हो, वही व्यक्ति आज अशांति का प्रतीक बन गया है. बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता और हिन्दू अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा के मामले यूनुस की मंशा पर सवाल खड़े करता है.
ऐसे में टाइम मैगज़ीन की तरफ से उन्हें विश्व के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल करना, खुद टाइम की विश्वसनीयता और तटस्थता पर प्रश्नचिन्ह खड़े करता है. क्या यह चयन किसी सच्ची उपलब्धि का सम्मान है, या अपने मनचाहे नायकों को चमकाने की पश्चिमी मीडिया की यह एक और कोशिश है?