रायपुर. छत्तीसगढ़ में सिर्फ धान की खेती ही नहीं बल्कि अन्य फसलों की खेती किसानों के लिए आय का एक नया, भरोसेमंद और टिकाऊ विकल्प बन सकती है. यदि सही तकनीक और समयबद्ध प्रबंधन के साथ खेती की जाए तो किसान कम समय में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. दरअसल, छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए सूरजमुखी की खेती एक सुनहरा मौका बनकर उभरी है.
कम लागत, कम समय में फसल और तेल निकालने की उच्च क्षमता के चलते सूरजमुखी की मांग तेजी से बढ़ी है. खास बात यह है कि सूरजमुखी की खेती बंजर और कम उपजाऊ जमीनों पर भी की जा सकती है, जिससे यह राज्य के छोटे और सीमांत किसानों के लिए लाभकारी साबित हो रही है.
सूरजमुखी की ये है सबसे बेस्ट वैरायटी
छत्तीसगढ़ में सूरजमुखी की एक उन्नत किस्म “पेन्ना-666” को विशेष रूप से बढ़ावा दिया जा रहा है. इस किस्म की बुवाई मई माह से की जा सकती है. प्रति हेक्टेयर 4 किलो बीज की दर से बुवाई की जाती है. बीजोपचार के तहत कार्बेन्डाजिम, पीएसबी, एजोटोबैक्टर, जेएसबी आदि का उपयोग जरूरी है, जिससे बीज की गुणवत्ता और अंकुरण क्षमता बढ़ती है. पंक्ति व्यवस्था 60×30 सेमी रखी जाती है, जिससे पौधों को पर्याप्त स्थान मिलता है. उर्वरक के रूप में 5 टन गोबर की खाद के साथ एनपीके 60:90:60 किलो प्रति हेक्टेयर की मात्रा में देना चाहिए.
तीन चरणों में फसल की करें सिंचाई
सिंचाई के लिए तीन चरणों में पानी देना आवश्यक होता है. पहली 25-30 दिन, दूसरी 40-55 दिन और तीसरी 60-65 दिन में बुवाई के बाद. फसल को कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए इमिडाक्लोप्रिड या थायोमेथोक्सम जैसे कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है. वहीं, फफूंदनाशक जैसे कार्बेन्डाजिम व मेनकोजेब का छिड़काव पत्तियों पर आने वाले धब्बों के नियंत्रण के लिए किया जाता है. खरपतवार प्रबंधन के लिए ऑक्सीफ्लोरेफेन और मैट्रीब्यूजिन का प्रयोग आवश्यक है.
एक हेक्टेयर से 15 क्विंटल तक मिलगी उपज
सूरजमुखी से निकलने वाला तेल उच्च गुणवत्ता वाला होता है और बाजार में इसकी भारी मांग है. एक हेक्टेयर में 10-15 क्विंटल तक उत्पादन संभव है, जिससे किसान औसतन 50,000 से 80,000 रुपए तक की आमदनी कर सकते हैं. चूंकि यह फसल 90 से 100 दिनों में तैयार हो जाती है, इसलिए किसान इसे अन्य फसलों के साथ रोटेशन में भी ले सकते हैं, छत्तीसगढ़ राज्य सरकार द्वारा उन्नत बीज, उर्वरक और कीटनाशकों पर अनुदान दिया जा रहा है. इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर द्वारा प्रशिक्षण शिविरों और खेतों पर प्रदर्शन के जरिए किसानों को सूरजमुखी की आधुनिक तकनीक सिखाई जा रही है,