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वैज्ञानिकों ने पाया कि पक्षियों में भी इंसानों की तरह अलग बोचचाल और गीत संगीत का लहजा होता है. वे एक दूसरे से संगीत सीखते हैं. उनका संगीत उनके जीवन और स्थान से प्रभावित होता है. यहां तक कि उनके समूह में मिलने …और पढ़ें

हैरानी की बात ये है कि पक्षी उसी तरह से स्थानीय गीत संगीत रचते हैं ऐसे की इंसान करते हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
हाइलाइट्स
- पक्षियों में भी इंसानों की तरह लोकल एक्सेंट होता है
- पक्षी एक दूसरे से संगीत सीखते हैं
- पक्षियों का संगीत उनके जीवन और स्थान से प्रभावित होता है
क्या संगीत केवल इंसान ही रच सकते हैं? क्या किसी और जीव में संगीत की इतनी समझ है जितनी की इंसानों में? इस सवाल का जवाब साइंटिस्ट्स भले ही ना में दें, लेकिन नई रिसर्च में उन्होंने बहुत ही अनोखा नतीजा हासिल किया है. उन्होंने पाया है कि इंसानों की तरह पक्षियों में भी लोकल एक्सेंट होता है और एक दूसरे से संगीत सीखते भी हैं. यहां तक कि युवा पक्षी भी नई स्टाइल के संगीत निकाला करते हैं.
इंसानों की तरह ही
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक लाख से पक्षियों का अध्ययन किया जिसमें उन्होंने पाया कि पक्षी स्थानीय गीतों की संस्कृति होती है जो कि उन पक्षियों की खास होती है जहां वे रहते हैं. इतना नही नहीं घूमने फिरने वाले पक्षियों का इस में योगदान होता है और अजनबियों को अपने समूह में शामिल करने से भी गीत संगीत का खासा प्रसार होता है जैसा कि इंसानों के साथ भी होता है.
मरने के बाद खत्म होते हैं पक्षी के संगीत
अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता निलो मेरिनो रेकाल्डे का कहना है कि पक्षी की गतिविधियां और जीवन इतिहास उनके गाए गानों का आकार देता है, इसके साफ प्रमाण मिले हैं. इतना नहीं हैं पक्षियों के जगह छोड़ने और मरने के बाद बहुत सारे गीत उनके साथ गायब भी हो जाते हैं. क्योंकि पक्षियों के पास परंपरा सहेजने का कोई तरीका नहीं होता है. फिर भी संगीत एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक भी जाता है.

पक्षी समूह के आधार पर खुद का संगीत बनाते ही हैं. साथ बाहर से आने वाले साथी भी उसमें नया योगदान देते हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
उम्र के साथ भी होते हैं बदलाव
वहीं नए पक्षी अपने गीतों में नए बदलाव लाते हैं. इतना ही नहीं यह बदलाव उम्र के साथ भी होता है और स्थान परिवर्तन से भी होता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि पक्षी वैसे तो स्थानीय स्तर का संगीत रचते रहते हैं और अपनी बोली और संगीत परम्पराओं को बनाने का काम भी करते हैं. वहीं जैसे जैसे पक्षी किसी समूह से में ज्यादा जुड़ते चले जाते हैं वे और भी संगीत सीखते चले जाते हैं.
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वहीं अजीब बात यह भी पाई गई है, जहां जो पक्षी अपने जन्मस्थान के करीब रहते हैं वह ज्यादा और खास तरह के स्थानीय संगीत संस्कृति को रचते हैं. यह बिलकुल वैसा ही है जैसे अपने जन्म स्थान के पास रहने वाले संगीतकार खास बोली और संगीत स्टाइल की रचना करते हैं.