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लंदन में जैक द रिपर नामक सीरियल किलर की हत्याओं का मामला 137 साल बाद भी अनसुलझा है. ऐसा लग रहा था कि कुछ साल पहले मिले नए डीएनए सबूतों से न्याय मिलेगा. लेकिन अब पीड़ितों के वंशजों ने मामले की नई जांच की मांग क…और पढ़ें

लंदन के इस मशहूर सीरियल किंलिंग्स ने शहर में दहशहत और दुनिया में सनसनी फैला दी थी. (तस्वीर: Meta AI)
137 साल पहले एक एक सीरियल किलर के एक साथ की गईं कई महिलाओं की हत्याओं ने दुनिया भर में सनसनी मचा दी थी. लंदन में इस जैक द रिपर नाम के सीरियल किलर की हत्याओं के मामलों में असली हत्यारे का आज पता नहीं चल सका. एक सदी के बाद मिले कुछ डीएनए के नए सबूत मिले थे. मामले में मारी गई महिलाओं के वंशजों ने मामले को खुलवाया था. तब मामलों के अंजाम तक पहुंचने और हत्यारे की पहचान की उम्मीद जागी थी. पर ऐसा लगता है कि यह मामले शायद एक बार फिर उलझते नजर आ रहे हैं. अब चार पीड़ितों के वंशजों ने मामलों की नए सिरे से जांच की मांग की है. 3-4 पीढ़ियों से वे अब तक न्याय का इंतजार कर रहे हैं.
कैसे मिला था हत्यारे का सुराग
119 साल बाद इस मामले में एक अहम सबूत तब मिला जब अपराधों का कुख्यात आरोपी एरोन कोसमिंस्की की पहचान डीएनए के जरिए हो सकी. पुलिस के एक नीलामी के बाद एक शॉल मिली थी, जिसमें कोसमिंस्की और एक पीड़िता, कैथरीन एडोज़ के खून के निशान पाए गए थे. तबी उम्मीद जागी थी कि अब इस हत्याकांड के असली आरोपी की पहचान हो सकेगी.
पीड़ितों के वंशजों की अपील
तीन महीने पहले कैथरीन के वंजशों ने एटॉर्नी जनरल से निवेदन किया था कि हत्याकांड की जांच फिर से खोला जाए, अब कैथरीन की वंशज कैरन मिलर ने फिर से अपील दोहराई है. इसमें बाकी पीड़ितों और वंशज भी नई जांच के पक्ष में हैं. खास बात ये है कि इनमें खुद आरोपी के भी वंशज शामिल हैं.

137 साल पहले हुई हत्याओं के आरोपी की डीएनए पहचान के बाद भी हत्यारा तय नहीं हो सका है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
हत्यारे के आरोपी को लेकर एक दावा
इस हत्याकांड की ना केवल दुनिया भर में खूब चर्चा हुई ती बल्कि इस पर कई बार रिसर्च हो चुकी है और इस विषय पर कई फिल्में भी बन चुकी हैं. एक शोधकर्ता रसेल एडवर्ड का दावा है कि हत्यारे को पुलिस से बचाया गया था और उसे मरने तक पागलखाने में भर्ती कर दिया गया था. उस समय 23 साल का कोसमिंस्की को पुलिस सबूत के अभाव की वजह से कभी गिरफ्तार नहीं कर सकी थी.
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कानून के मुताबिक अटॉर्नी जर्नल को इजाज़त देनी होती है कि हाई कोर्ट मे जज को आवेदन किया जाए जिससे नई सुनावाई का आदेश दिया जा सके. दो साल पहले यह इजाजत ही नहीं दी गई थी. पर अब नए सिरे से जांच की मांग तेज होने से यह मामला फिर सुर्खियों में हैं. हैरानी की बात है कि कई पीढ़ियां एक न्याय के लिए कोशिश कर रही हैं.