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Ranchi Tapovan Temple: रांची के तपोवन मंदिर को अयोध्या के राम मंदिर के जैसा रूप देने का काम तेज़ी से चल रहा है. मंदिर में 13 भव्य शिखर और 117 पवित्र शिलाओं का निर्माण होगा. लगभग 100 करोड़ रुपये की लागत से इस मं…और पढ़ें

100 करोड़ की लागत से रांची के तपोवन मंदिर का बदलेगा स्वरूप, अयोध्या के राम मंदिर
हाइलाइट्स
- रांची का तपोवन मंदिर बनेगा अयोध्या के राम मंदिर जैसा.
- मंदिर निर्माण में 100 करोड़ रुपये का खर्चा अनुमानित.
- मंदिर में 13 शिखर और 117 पवित्र शिलाओं का निर्माण होगा.
रांची. झारखंड की राजधानी रांची के डोरंदा स्थित तपोवन मंदिर अब कुछ सालों के भीतर अयोध्या के राम मंदिर के जैसा नजर आने वाला है. यहां पर दिन-रात मजदूर काम में लगे हुए हैं और काम को तेज किया गया है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी यहां पर आकर पूरे विधि-विधान से मंदिर निर्माण के शिलान्यास की ईंट रखी है.
तपोवन मंदिर के महंत ओमप्रकाश ने लोकल 18 को बताया कि यह मंदिर तपस्या का मंदिर है. यहां पर संत महात्मा तपस्या किया करते थे. इसी वजह से इस मंदिर का नाम तपोवन रखा गया है. यह मंदिर तपस्या की एक निशानी है. अब इस मंदिर को अयोध्या के राम मंदिर के प्रारूप में कुछ सालों में एक नया रूप मिलेगा.
मंदिर की विशेषताएँ और निर्माण कार्य
महंत ओमप्रकाश के अनुसार, इस मंदिर में 13 भव्य शिखरों और 117 पवित्र शिलाओं का निर्माण किया जाएगा. प्रत्येक गर्भगृह में 9-9 पवित्र शिलाएं स्थापित की जाएंगी. मंदिर का निर्माण लगभग 14,000 वर्गफुट क्षेत्र में होगा और इसकी ऊंचाई 62 फीट होगी. मंदिर निर्माण में राजस्थान के प्रसिद्ध कुंवारी मकराना मार्बल का उपयोग किया जाएगा. फिलहाल, यहां नींव डालने का काम जारी है और इसके लिए गड्ढे करने का कार्य चल रहा है.
मंदिर निर्माण में निवेश और लक्ष्य
इस मंदिर को अयोध्या के राम मंदिर के प्रारूप में बनाने में लगभग 100 करोड़ रुपये का खर्चा आने का अनुमान है. इस बार के बजट सत्र के दौरान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी विधानसभा में इस मंदिर के जीर्णोद्धार की घोषणा की थी. इसका मतलब अब रांची में भी जल्द एक अयोध्या जैसा राम मंदिर बनेगा.
400 साल पुराना है तपोवन मंदिर
महंत ओमप्रकाश ने बताया कि तपोवन मंदिर 400 साल पुराना है और यह अंग्रेजों के जमाने का है. यहां के गर्भगृह से राम भगवान स्वयं प्रकट हुए थे. इसलिए यह मंदिर झारखंड के लोगों के लिए आस्था का बड़ा केंद्र है. यह सिर्फ एक मूर्ति नहीं है, बल्कि श्रद्धालुओं के लिए साक्षात मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम यहां विराजमान हैं. पहले यह स्थान जंगल हुआ करता था और संत महात्मा यहां तपस्या किया करते थे. एक अंग्रेज अधिकारी ने इन संत महात्माओं से प्रभावित होकर यहां मंदिर बनाने का निर्णय लिया था.