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Celery Farming Tips: अजवाइन की उन्नत किस्म की खेती कर किसान तगड़ी कमाई कर सकते हैं. अजवाइन की ‘छ.ग. अजवाइन-1’ किस्म को अपनाकर बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं. वहीं प्रति हेक्टेयर केवल 1.5 से 2 किग्रा बीज की आव…और पढ़ें

अजवाइन की खेती
हाइलाइट्स
- ‘छ.ग. अजवाइन-1’ किस्म से 10-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज संभव.
- प्रति हेक्टेयर 1.5-2 किग्रा बीज की आवश्यकता होती है.
- अजवाइन की खेती से किसानों को अधिक मुनाफा हो सकता है.
रायपुर. छत्तीसगढ़ के कृषि क्षेत्र में एक नई क्रांति दस्तक दे रही है और वह है अजवाइन की उन्नत किस्म की खेती. विशेष रूप से ‘छत्तीसगढ़ अजवाइन-1’ किस्म को अपनाकर किसान न केवल पारंपरिक खेती से आगे बढ़ रहे हैं, बल्कि अधिक मुनाफा भी कमा रहे हैं. इस किस्म की खेती से जुड़ी वैज्ञानिक विधि, सही समय पर बुवाई और उर्वरक प्रबंधन ने उत्पादन क्षमता को कई गुना बढ़ा दिया है.
‘छत्तीसगढ़ अजवाइन-1’ किस्म के लिए प्रति हेक्टेयर केवल 1.5 से 2 किग्रा बीज की आवश्यकता होती है. बुवाई से पहले बीज को कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित किया जाता है, जिससे बीज जनित रोगों से सुरक्षा मिलती है.
अजवाइन की खेती में अपनाएं ये तरीका
अजवाइन की खेती में पंक्ति का विन्यास 30×20 सेमी (क़तार x पौधा) रखा जाता है, जिससे पौधों के विकास के लिए पर्याप्त स्थान मिलता है. खेती में 8 से 10 टन गोबर खाद के साथ नत्रजन 90, फास्फोरस 40 और पोटाश 30 किग्रा प्रति हेक्टेयर का प्रयोग किया जाता है. ड्रिप सिंचाई प्रणाली से प्रत्येक दो दिन के अंतराल पर 30 मिनट तक जल आपूर्ति की जाती है, जिससे जल की बचत के साथ-साथ पौधों को आवश्यक नमी मिलती है. इसके अतिरिक्त एनपीके (19:19:19, 12:61:0, 13:0:45) जैसे घुलनशील उर्वरकों का फर्टिगेशन विधि से उपयोग किया जाता है. खरपतवार नियंत्रण के लिए “ऑक्सीफ्लोरोफेन” 75 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव किया जाता है. वहीं कीट नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड और थायोमेथोक्ज़ाम का मिश्रण प्रभावी पाया गया है. रोग प्रबंधन के लिए माइकोब्यूटानॉल और ट्राइकोडर्मा जैविक उपायों से जड़ों को सड़न से बचाया जाता है.
10 से 12 क्विंटल तक उत्पादन
उन्नत प्रबंधन के साथ, एक हेक्टेयर भूमि से 10 से 12 क्विंटल तक अजवाइन का उत्पादन संभव है. वर्तमान बाजार दरों को देखते हुए यह किसानों के लिए लाभ का सौदा साबित हो रहा है. सामान्यत: परंपरागत फसलों की तुलना में यह खेती कम समय में अधिक मुनाफा देती है. भविष्य में अजवाइन की खेती राज्य में औषधीय खेती के रूप में नई ऊंचाइयां छू सकती है. इससे न केवल किसानों की आमदनी में बढ़ोतरी होगी, बल्कि छत्तीसगढ़ औषधीय फसलों में आत्मनिर्भर बन सकेगा.