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Deoria: देवरिया जिले का ये मंदिर भक्तों के बीच खास मान्यता रखता है मान्यता है कि यहां मांगी गई हर मुराद पूरी होती है. यहां पीपल और बरगद इस तरह जुड़े हैं कि लोग इन्हें शिव-शक्ति के मिलन का प्रतीक मानते हैं.

देवरिया के हृदय में बसा शिवधाम: मठिया मंदिर की अद्भुत कथा
हाइलाइट्स
- देवरिया का शिव मंदिर भक्तों के बीच खास मान्यता रखता है.
- मंदिर परिसर में बरगद और पीपल का अद्भुत मिलन है.
- श्रावण मास और महाशिवरात्रि पर हजारों श्रद्धालु आते हैं.
Deoria: उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के खुखुन्दू क्षेत्र में स्थित मठिया गांव का प्राचीन शिव मंदिर धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है. यह मंदिर आज भी क्षेत्रीय जनमानस की आस्था का प्रमुख केंद्र बना हुआ है. घने वृक्षों से ढता यह शांत परिसर न केवल भक्ति का प्रतीक है, बल्कि अतीत की विरासत को भी संजोए हुए है. इस मंदिर की स्थापना किस काल में हुई, यह स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं है, लेकिन स्थानीय जनश्रुति के अनुसार यह मंदिर कई शताब्दियों पुराना है.
क्या है मान्यता
कुछ बुजुर्गों की मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण किसी लोकल राजा या जागीरदार द्वारा करवाया गया था, जो शिवभक्त थे और अपने क्षेत्र को धार्मिक चेतना से जोड़ना चाहते थे. मंदिर की वास्तुकला साधारण होते हुए भी उसमें प्राचीनता की झलक मिलती है . शिवलिंग एक विशाल चबूतरे पर विराजमान है और उसके चारों ओर पुराने पत्थरों की दीवारें हैं, जिन्हें देखकर लगता है कि यह स्थान सैकड़ों वर्षों से पूजित है.
पूरी होती है मुराद
मंदिर के पुजारी जयंत गिरी बताते हैं, “यह स्थान केवल पूजा का केंद्र नहीं, बल्कि आत्मिक शांति का स्थान है. मेरे पूर्वज भी इसी मंदिर में पूजा करते थे. लोगों की मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद भोलेनाथ जरूर पूरी करते हैं. श्रावण मास और महाशिवरात्रि पर यहां हजारों श्रद्धालु आते हैं.”
इतिहास के बारे में
स्थानीय निवासी रामेश्वर पांडे, जिनकी उम्र 75 वर्ष से अधिक है, मंदिर के इतिहास से जुड़ी कई बातें साझा करते हैं. वे कहते हैं, “मैंने अपने दादा से सुना था कि यह मंदिर बहुत पुराने समय में किसी राजा के संरक्षण में बना था. उस समय यहां शिवरात्रि पर मेला लगता था और दूर-दूर से साधु-संत आते थे. अंग्रेजों के समय में भी यह मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र बना रहा. तब यहां कोई पक्की सड़क नहीं थी, लोग खेतों के रास्ते चलकर आते थे.”
जुड़े हैं बरगद और पीपल
मंदिर परिसर के पास एक और अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है, यहां एक बरगद और पीपल का पेड़ आपस में ऐसे जुड़ गए हैं, मानो वे एक ही वृक्ष हों. दोनों की जड़ें इतनी गहराई से मिल गई हैं कि अलग-अलग पहचान पाना मुश्किल है. स्थानीय लोगों की मान्यता है कि यह प्राकृतिक चमत्कार शिव-शक्ति के मिलन का प्रतीक है.
तालाब भी है खास
इसके अलावा, मंदिर के सामने एक प्राचीन तालाब भी है, जिसे हजारों वर्ष पुराना माना जाता है. यह तालाब अब भी जीवित है और श्रावण में यहां विशेष स्नान व पूजा का आयोजन होता है. यह मंदिर एक मौन गाथा है, जो अपने अतीत की गहराई को वर्तमान की आस्था से जोड़ता है. संरक्षण और शोध की आवश्यकता इसे एक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में स्थापित कर सकती है.